
श्रीमहंत रामरतन गिरी- गुरु बिन ज्ञान न होत है, गुरु बिन दिशा अजान, गुरु बिन इन्द्रिय न सधें, गुरु बिन बढ़े न शान
शिष्य वही जो सीख ले, गुरु का ज्ञान अगाध,
भक्तिभाव मन में रखे, चलता चले अबाध।
गुरु ग्रंथन का सार है, गुरु है प्रभु का नाम,
गुरु अध्यात्म की ज्योति है, गुरु हैं चारों धाम।
हमारी संस्कृति में गुरु का बड़ा महत्व है। गुरु ज्ञान और शिक्षा का भंडार है। गुरु की इसी महिमा और महत्व को हर किसी तक पहुंचाने के लिए हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के तौर पर मनाया जाता है।
एक गुरू हमेशा अपने शिष्य को सही मार्ग दिखाता है और उसके प्रति सच्ची परवाह करता है। इस पर्व के प्रति लोगों की काफी आस्था है और इसका मुख्य कारण यह है कि वे गुरू पूर्णिमा के दिन को अपने गुरुओं को सम्मान और श्रद्धांजलि देने का दिन हैं
गुरू पूर्णिमा वह त्योहार है जो हमारे आध्यात्मिक गुरू को समर्पित होता है। एक गुरू हमें केवल ज्ञान ही नहीं देता बल्कि साथ ही जीवन जीने का सही मार्ग भी दिखाता है। हम शिक्षक दिवस मनाते है, जिसका महत्व भी खास है परन्तु वो शिक्षक हमें अकादमिक ज्ञान देते हैं लेकिन एक आध्यात्मिक ज्ञान देने वाला गुरू हमें पूर्ण और सच्चा इंसान बनाता है। गुरू वह है जो हमें स्वयं को प्रबुद्ध करने में सहायता करता है और समृद्ध जीवन जीने के लिए हमारा मार्गदर्शन करता है।
हे, गुरु जी तुमको नमस्कार,
तुम करते हमको अमित प्यार,
हम करते तुमको नमस्कार।
तुमने जो हमको दिया ज्ञान
है वही बढ़ाना सदा मान
है देश धर्म की ये पुकार
हे गुरु जी तुमको नमस्कार